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सदस्य:Azad bhagat
Kavita Kosh से
आज मैं बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा
जज्बातों के कुछ बंधन है
जो देते मुझको उलझन है
उलझन में बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा
मैं भी कैसा दीवाना था
औरो में खुश रहता था
अपनों में बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा
--Azad bhagat 13:01, 12 अक्टूबर 2011 (CDT)आजाद भगत