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सदस्य:Umakant

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इस प्रेम की अविरल धारा में , सांसों का क्रम बढ जाता है

जब बात जुबा पर आती है , दिल में सैलाब सा आता है

जब कहने को कुछ करता मन, होंठों पर के शब्द खो जाते है

इस बंद जुबा के अनकहे लफ्ज , बिन सुने ही समझे जाते है

शब्दों का अथाह सागर हृदय में है ,बोलने को भी मन करता है

पर ये जुबा बंद हो जाती है , जब प्रेम अधिक हो जाता है

जब प्रेम अधिक हो जाता है , सांसो में कोई घुल जाता है

तब हृदय का निश्छल प्रेम , बरबस ही आखों से बह जाता है