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पूंजी / अरुण कमल

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न पहाड़ों के गीत थे मेरे पास

न घाटियों दर्रों के

न सागर नदियों के गीत थे

न नाविक मछुआरों के,

मैं तो मैदानों खेतों का रहनवार

थोड़े से बोल थे बग़ीचे बघारों के ।