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भीत / अरुण कमल

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मेरी एक तरफ़ बूढ़े हैं

पीठ टिकाए बहुत पहले से बैठे जगह लूट

कि उतरेगी पहले उन्हीं पर धूप

मेरी दूसरी तरफ़ बच्चे हैं

मेरी आड़ ले खेलते क्रिकेट

कि गेंद यहीं जाएगी रुक


मैं एक भीत

खिर रही है एक-एक ईंट

गारा बन चुका है धूर


पर गिरूँ तो किधर मैं किस तरफ़

खड़ा खड़ा दुखने लगा पैर ।