Last modified on 26 अक्टूबर 2011, at 21:23

कैसे सहें छतों का बोझा / अश्वघोष

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:23, 26 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह=जेबों में डर / अश्व...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कैसे सहें
छतों का बोझा
सीलन से भीगी दीवारें ।

पानी-पानी अन्तर तल है
टुकड़े-टुकड़े बिखरा सीना,
देख-देख बुनियादें दुबली
पेशानी पर घिरा पसीना ।

जल्लादों-सी
तेज़ हवाएँ
दौड़-दौड़ चाबुक से मारें ।

आँतों में दीमक की हरकत
आले-खिड़की लदे गोद में,
चिड़ियों ने सब खाल खुरच दी
आमादा होकर विरोध में

कोढ़ सरीखी
चितकबरी-सी
उभर रही तन पर बौछारें ।
कैसे सहें
छतों का बोझा
सीलन से भीगी दीवारें ।