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ठूँठ पर बैठा कबूतर / अश्वघोष
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ठूँठ पर
बैठा कबूतर
देखता है जाल ।
जाल में है एक चिड़िया
सेर भर दाने,
छटपटाते शब्द हैं
कुछ तप्त अगिहाने,
ढेर सारी
चुप्पियाँ
दब रहा भूचाल ।
दूरवर्ती झाड़ियों से
दो बघेली आँख
शातिराने ढँग से
गुपचुप रही है झाँक
हो न जाए
कोई कछुआ
भील या संथाल !