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क्या दूँ तुम्हें / राजा खुगशाल

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पूस की ठिठुरती शाम दूँ

कि जेठ की दुपहर


दुनियावी दुख दूँ कि

जीवन की ख़ुशी


वीरान बस्तियों की उदासी

या सुखों की मुस्कान


पुरवा के झोंकों में

झूमती फसल

कि नवान्न की इच्छा में

भटकते दिन

क्या दूँ तुम्हें


जिसका एक पॄष्ठ उलटने का अर्थ

अमरूदों में हेमन्त

और हेमन्त के बाद

शिशिर का आना होगा


कि जिसका अर्थ

रबी के बाद खरीफ की फसल का

कट जाना होगा


यह जीवन

यह पृथ्वी

उतनी ही सुन्दर है

जितनी की तुम !