भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता क्यों चले गए / पद्मजा शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:21, 1 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मजा शर्मा |संग्रह=सदी के पार / पद...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


माँ बहुत रोती है पिताजी !
पहले कभी देखे नहीं थे
माँ की आँखों में आँसू
आजकल सूखते ही नहीं

बेटा दफ्तर जाते समय
न मिले तो आँसू
पोता न सुने कहानी
घर में हो ब्याह
या जाया हो नाती
हर मौके बस रोती है माँ

आप जानते हो पिताजी
आपके खाने से पहले खाती नहीं थी
सोने से पहले सोती नहीं थी माँ

जब तक आपसे नहीं कर लेती थी तकरार
कहाँ शुरू होता था उसका दिन
आपका भी कहाँ लगता था मन
जब हो जाती थी नाराज़
कितना मनाते थे आप

सुनाकर माँ को कहते थे-
‘तेरी माँ का स्वभाव फूल सरीखा है !
जो दूसरों को बांटकर सुगंध
बिखर जाता है ख़ुद’

तब माँ फेर लेती थी पीढ़ा
और आँखों की कोर से
पोंछती थी गीलापन

जब से आप गए हो पिताजी
बैठी रहती है आपकी तस्वीर के आगे
बिना कुछ खाए-पिए
काट देती है सारा दिन

कभी-कभी हँसता देखकर पोते को
कहती है धीरे से-
‘तेरे पिता हँस रहे हैं !’

पर आप पहले की तरह
सिर्फ माँ के लिए
कब हँसोगे पिताजी ?