भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाजार में मैं / अनीता अग्रवाल

Kavita Kosh से
Shmishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:09, 9 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता अग्रवाल |संग्रह= }} <poem> बहुत दि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बहुत दिनों बाद मैं बाजार निकली
तो लगा
कि चीजें मेरे इंतजार में हैं
इंतजार में है
एक पुरी दुनिया
खासर मेरे लिए
खुलने को बेचैन
यह क्या हुआ
कि मैं बाजार में पहुंची
चीजें सब वहीं थाी
सलीके से लगी हुई
मैं ही नहीं रह गई थी अपनी जगह