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रात के तीसरे पहर / पद्मजा शर्मा

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एक आदमी हमारे बीच
बैठा था अभी-अभी
खेल रहा था ताश
हँस रहा था जीतकर
हार कर हो रहा था उदास

‘नींद है मुझसें कोसों दूर
आज खेलूंगा पूरी रात’
अभी-अभी तो कहा था उसने बेटी से

बेटा पाकर चारों इक्के
पिता को पहनाने ही वाला था कोट
कि रात के तीसरे पहर
एकाएक उस आदमी के हाथ से
छूट गए सारे पत्ते
सो गया इतनी गहरी नींद
कि जगा नहीं फिर कभी

पत्ते पड़े हैं ज्यों के त्यों
बस बादशाह चला गया
रोती छोड़कर बेगम को
रात के तीसरे पहर।