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बिना तुम्हारे / कैलाश गौतम
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बिना तुम्हारे सूना लगता
फागुन कसम गुलाल की
हंसकर देने लगी चुनौती
हवा गुलाबी ताल की |
सरसों का आंचल लहराया
पानी चढा टिकोरों में
महुआ जैसे सांप लोटता
रस से भरे कटोरों में
नींद नहीं आँखों में कोई
बदली है बंगाल की |
देह टूटती ,गीत टूटता
छंद टूटते फागुन में
बैरी हुए हमारे
बाजूबंद टूटते फागुन में
रोज दिनों दिन छोटी होती
अंगिया पिछले साल की |
जाने कैसे -कैसे सपने
देखा करती रातों में
आग लगी आंचल में जैसे
दरपन टूटा हाथों में
डर है कोई सौत न छीने
बिंदिया मेरे भाल की |