भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिश्ते हैं पर--- / अशोक रावत
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:15, 21 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अशोक रावत |संग्रह= थोड़ा सा ईमान / अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रिश्ते हैं पर ठेस लगानेवाले हैं,
सारे मंज़र होश उड़ानेवाले हैं.
अब क्यों माँ को भूखा सोना पड़ता है,
अब तो घर में चार कमानेवाले हैं.
इनको मुझसे हमदर्दी तो है लेकिन,
ये सब गुटखा - पान चबानेवाले हैं.
जनगणमन से इनका क्या लेना- देना,
ये तो बस जनगणमन गानेवाले हैं.
कोई इनमें मेरा साथ नहीं देगा,
सजधज कर जो आने जानेवाले हैं.
इनके जाने इस दुनिया में आग लगे,
ये क्या काम किसी के आनेवाले हैं.