भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रश्न कभी हल होते हैं, / अशोक रावत
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:16, 21 नवम्बर 2011 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अशोक रावत |संग्रह= थोड़ा सा ईमान / अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बंदूकों से प्रश्न कभी हल होते हैं,
लोग इस तरह फिर क्यों पागल होते हैं.
इतना गुस्सा आसमान पर आखिर क्यों,
इसके वश में क्या सब बादल होते हैं.
हिम्मत कर और आगे बढ़, ज़्यादा मत सोच,
हिम्मत्वाले कम ही असफल होते हैं.
खोट निकाला करते हैं वो राहों में ,
जिनके सोच समझ में जंगल होते हैं.
उन पर आकर नहीं बैठते पक्षी भी,
अगर विषैले पेड़ों के फल होते हैं.
पहले होते थे होटल भी घर जैसै,
लेकिन घर अब होटल जैसै होते हैं.