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हर सितम तेरा नातवां तक है / प्रेमचंद सहजवाला
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हर सितम तेरा नातवां तक है
ये हुकूमत तो बेज़ुबां तक है
उड़ रहा है कोई परिंदा देख
उसकी परवाज़ कहकशां तक है
प्यार की गम भरी कहानी सुन
ये यकीं सिर्फ इक गुमां तक है
राज़ खुलने लगे हैं गुलशन के
फूलों की जिंदगी खिज़ां तक है
मैं अकेला कहीं गया ही नहीं
मेरा तारुफ तो कारवां तक है
मेरी आँखें खुली हैं अचरज से
देख सहरा की हद कहाँ तक है