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रुला के गया सपना मेरा / मजरूह सुल्तानपुरी
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रुला के गया सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा, रुला ...
वही है ग़म\-ए\-दिल, वही है चंदा, तारे
हाय, वही हम बेसहारे
आधी रात वही है, और हर बात वही है
फिर भी न आया लुटेरा, रुला ...
कैसी ये ज़िंदगी, कि साँसों से हम, ऊबे
हाय, कि दिल डूबा हम डूबे
एक दुखिया बेचारी, इस जीवन से हारी
उस पर ये ग़म का अन्धेरा, रुला ...