भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नई पढ़ी का गीत / दुष्यंत कुमार

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 25 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यंत कुमार |संग्रह=सूर्य का स्व...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो मरुस्थल आज अश्रु भिगो रहे हैं,
भावना के बीज जिस पर बो रहे हैं,
सिर्फ़ मृग-छलना नहीं वह चमचमाती रेत!

क्या हुआ जो युग हमारे आगमन पर मौन?
सूर्य की पहली किरन पहचानता है कौन?
अर्थ कल लेंगे हमारे आज के संकेत।

तुम न मानो शब्द कोई है न नामुमकिन
कल उगेंगे चाँद-तारे, कल उगेगा दिन,
कल फ़सल देंगे समय को, यही ‘बंजर खेत’।