भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तूने ओ रँगीले कैसा जादू किया / मजरूह सुल्तानपुरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 25 नवम्बर 2011 का अवतरण
तू ने ओ रँगीले कैसा जादू किया
पिया! पिया!! बोले मतवाला जिया
बाँहों में छुपा के ये क्या किया?
ओ रे पिया! ओ ...
पास बुला के, गले से लगा के
तू ने तो बदल डाली दुनिया
नए हैं नज़ारे, नए हैं इशारे
रही नो वो कल वाली दुनिया
सपने दिखाके तू ने ये क्या किया?
ओ रे पिया! ओ ...
तू ने ओ रँगीले कैसा जादू किया
पिया पिया बोले मतवाला जिया
ओ मेरे साजन! कैसी ये धड़कन
शोर मचाने लगी मन में
जैसे लहराए नदिया का पानी
लहर उठे रे मेरे तन में
मुझ में समा के ये क्या किया?
ओ रे पिया! ओ ...
तू ने ओ रँगीले कैसा जादू किया
पिया! पिया!! बोले मतवाला जिया
बाँहों में छुपा के ये क्या किया?
ओ रे पिया! ओ ...