Last modified on 19 सितम्बर 2007, at 10:33

अविनय अनुनय कोई / पंकज सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:33, 19 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सिंह |संग्रह=आहटें आसपास }} एक दृश्य ओझल हो गया जिस...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक दृश्य ओझल हो गया जिसमें मेरा बेटा था


एक दृश्य गुम हो गया जिसमें मेरी माँ थी


कितनी अक्षौहिणी सेनाएं लिए आते हो जीवन

कितना रक्त चाहिए

कितना रक्त

एक आदमी से


होने दो उसे उतना-सा वह

कम से कम

जो उसे होना

(ही)

है ।


(रचनाकाल : 1980)