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मैं तुम्हें नहीं लिखूंगा / पंकज सिंह
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मैं तुम्हें नहीं लिखूंगा कि मेरी आँखें ख़राब हो गई हैं
मैं नहीं लिखना चाहता कि एक जुलूस में पिटने के बाद
मेरे दाहिने घुटने में लगातार दर्द रहता है
एक सरकारी आदमी मेरी परछाईं से ज़्यादा घंटे
मेरे इर्द-गिर्द गुज़ारता है
मैं लिखूंगा और तुम रोओगी सारी रात
कि कई-कई शामें चली जाती हैं यों ही बिना खाए
जब मैं तुम्हें लिखने बैठता हूँ
मेरी उंगलियों पर तम्बाकू के काले दाग़ चमकते हैं
मैं क़लम वापस बन्द कर देता हूँ
(रचनाकाल : 1978)