भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब दर्द नहीं था सीने में / आनंद बख़्शी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:26, 27 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद बख़्शी }} {{KKCatGeet}} <poem> न हँसना मेरे ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
न हँसना मेरे ग़म पे इंसाफ़ करना
जो मैं रो पड़ूँ तो मुझे माफ़ करना

जब दर्द नहीं था सीने में
क्या ख़ाक मज़ा था जीने में
अब के शायद हम भी रोयें सावन के महीने में
जब दर्द नहीं था ...

यारो का ग़म क्या होता है
मालूम न था अन्जानों को
साहिल पे खड़े होकर अक़्सर
देखा हमने तूफ़ानों को
अब के शायद दिल भी डूबे
मौजों के सफ़ीने में
जब दर्द नहीं था ...

ऐसे तो ठेस न लगती थी
जब अपने रूठा करते थे
ऐसे तो दर्द न होता था
जब सपने टूटा करते थे
अब के शायद दिल भी टूटे
अब के शायद हम भी रोयें सावन के महीने में
जब दर्द नहीं था ...

इस क़दर प्यार तो कोई करता नहीं
मरने वालों के साथ कोई मरता नहीं
आप के सामने मैं न फिर आऊँगा
गीत ही जब न होंगे तो क्या गाऊँगा
मेरी आवाज़ प्यारी है तो दोस्तों
यार बच जाये मेरा दुआ सब करो
दुआ सब करो