भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा पर है / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:46, 28 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कभी वह फड़फड़ाता है
झूमता है कभी—
फड़फड़ाना झूमना उस का
पर उस पर नहीं
—हवा पर है
झूमती है कभी
कभी जो फड़फड़ाती है
हवा नहीं
पत्ता है लेकिन वह
—झर ही जाना है जिस को—
अपने झरने में भी लेकिन
हवा की मौज पर
लहराता, इतराता ।
—
17 अप्रैल, 2009