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हर हाल में बेजोड़ / वेणु गोपाल
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तिनका हूँ--सूखता हुआ । लेकिन
फिर भी
जंगल का एक बेजोड़ हिस्सा । जब
हरा-भरा होने में था
तो
सूखने में भी हूँ
(रचनाकाल :6 अक्तूबर 1975)