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बस जाती है / नंदकिशोर आचार्य
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उभरती हुई एक सूने से
वह आवाज़
साँवली एक लय में
रूप पाती है—
छूने जिसे
जल हो आता है
अस्तित्व यह सारा
आ कर मेरे सूने में
जब वह
बस
बस जाती है ।
—
24 सितम्बर 2009