भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाँच जोड़ बाँसुरी / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 20 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत/ वेणु गोपाल }} पाँ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पाँच जोड़ बाँसुरी

बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी

पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी

पाँच जोड़ बाँसुरी


वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो र्हा

मन उठ चलने को हो रहा

धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन

आधे अँचरा पर पिय सो रहा

मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी

पाँच जोड़ बाँसुरी