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तुम / शंख घोष
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उड़ता हूँ
और भटकता हूँ
दिन भर पथ में ही
सुलगता हूँ
पर अच्छा नहीं लगता
जब तक
लौट कर देख न लूँ कि तुम हो,
तुम ।
मूल बंगला से अनुवाद : नील कमल