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झरना बहाएँगे (ताँका)/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1 किसे था पता- ये दिन भी आएँगे अपने सभी पाषाण हो जाएँगे चोट पहुँचाएँगे। 2 जीवन भर रस पीते रहे वे तो जिए हम तो मर -मर घाव सीते रहे। 3 वे दर्द बाँटें बोते रहे हैं काँटे हम क्या करें? बिखेरेंगे मुस्कान गाएँ फूलों के गान। 4 काटें पहाड़ झरना बहाएँगे भोर लालिमा चेहरे पे लाएँगे सूरज उगाएँगे । 5 उदासी -द्वारे भौंरे गुनगुनाएँ मन्त्र सुनाएँ- जब तक है जीना सरगम सुनाएँ। 6 ओ मेरे मन ! तू सभी से प्यार की आशा न रख पाहन पर दूब कभी जमती नहीं । 7 मन के पास होते वही हैं खास बाकी जो बचे वे ठेस पहुँचाते तरस नहीं खाते 8 ये सुख साथी कब रहा किसी का ये हरजाई थोड़ा अपना दु:ख तुम मुझको दे दो। 9 पीर घटेगी जो तनिक तुम्हारी मैं हरषाऊँ तेरे सुख के लिए दु:ख गले लगाऊँ । 10 जो भी कामना मन में हो भावना सदा हो पूरी सदा चाँदनी खिले सिर्फ़ सुख ही मिले ! -0- </poem>