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स्मृति / मानसी / रामनरेश त्रिपाठी
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सुंदर सदन सुखदायक वही है, जहाँ
तरु के तले तू प्रिए! करती निवास है,
नंदन वही है, अमरावती वही है, वही
खेलता बसंत, जहाँ तेरा मद हास है।
तेरी याद ही में मेरे प्राण जी रहे हैं, मेरे
जीवन का ध्येय तेरे प्रेम का विकास है,
तेरी मंजु मूर्ति मेरे मन में बसी है, मन
रात-दिन रहता उसी के आस-पास है।