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स्वप्नों में तैर रहा हूँ / रामनरेश त्रिपाठी

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स्वप्नों में तैर रहा हूँ,
सुख क्या है इस जीवन में।
यदि एक किसी प्रियतम का
अनुराग नहीं है मन में।
यदि विरह नहीं अंतर में
है क्या आनंद मिलन में।
उठती ही यदि न तरंगे,
रस क्या है उस यौवन में।