भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वप्नों में तैर रहा हूँ / रामनरेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:26, 9 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
स्वप्नों में तैर रहा हूँ,
सुख क्या है इस जीवन में।
यदि एक किसी प्रियतम का
अनुराग नहीं है मन में।
यदि विरह नहीं अंतर में
है क्या आनंद मिलन में।
उठती ही यदि न तरंगे,
रस क्या है उस यौवन में।