भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लालसाएँ / हालीना पोस्वियातोव्स्का
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:26, 12 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=हालीना पोस्वियातोव्स्का |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
|
मुझे लुभाती हैं लालसाएँ
अच्छा लगता है
ध्वनि और रंगों के कटघरों पर सतत आरोहण
और जमी हुई सुवास को
अपने खुले मुँह में क़ैद करना ।
मुझे भाता है
किसी पुल से भी अधिक तना हुआ एकान्त
मानो अपनी बाहों में
आकाश को आलिंगनबद्ध करने को तल्लीन ।
और दिखाई देता है
बर्फ़ पर नंगे पाँव चलता हुआ
मेरा प्रेम ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह