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जाल जुलाहा / पीयूष दईया

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जाल जुलाहा
अकेला

जागा
अपने लिए

सारी आँख
जहाँ कोई पक्षी नहीं है

एक पिंजरा आकाश में
सीढ़ी है

गए फूलों से
वहाँ

या बारिश में गिर
एक बच रहा

है
जाल जुलाहा