Last modified on 12 दिसम्बर 2011, at 12:12

जब मैं कविताएँ पढ़ूँ / पीयूष दईया

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:12, 12 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> देखन...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखना
जब मैं कविताएँ पढ़ूँ
तब सभागृह में कोई न हो
जैसे भाषा या जीवन में

पढ़नेवाला
तो कत्तई नहीं
और सुननेवाला कल्पना तक से बाहर

और दर्शक भी
न रहे

आत्मा
जब मैं कविताएँ पढ़ूँ

लिखता हुआ मिलूँ