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मैं जानता हूँ पिता / समीर बरन नन्दी

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तुम्हारी अभावग्रस्त उम्र का हाड़ काँप रह होगा
और ऐसा ही कोट आजकल लोग पहन रहे हैं
वहाँ की उतरन से
ढक रहे हैं देश के आम लोग कम्पन
यह दिल्ली बाजार की उपलब्धि है.
इसकी जेबें बड़ी हैं
हो सकता है पिता
इसमें तुम्हारे खाली हाथ छुप जाएँ