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पीलिया आया / रमेश रंजक

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नहीं महकी मालती इस बार

खाद की कुछ कमी थी
कुछ धूप भी थी तेज़
शह मिली तो
चाँदनी भी हो गई अँग्रेज़

काटती दिन-रात
बेवा की तरह लाचार

हरे पत्तों की नसों में
पीलिया आया
फूल आँसू की तरह से
गिरा, कुम्हलाया

अंग सारा हो गया
आघात से इकसार

नहीं महकी मालती इस बार