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चुप है सारा बाग़ / रमेश रंजक
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ये अभियान ज़मींदारी के
गुलदस्ते के लिए तोड़ते—
फूल हमारी फुलवारी के
सुर्ख़, सफ़ेद, गुलाबी, पीले
रोज़ तोड़ते रहे हठीले
चुप हैं सारा बाग़ देखकर
इनके ढंग फ़ौजदारी के
पहले करे निहत्था, मारें
भीड़ लगे, खुलकर पुचकारें,
अस्पताल की कहें, जेल में
डालें, काम होशियारी के
ये अभियान ज़मींदारी के