भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह कैसी उजियाली / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 13 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=मिट्टी बोलती है /...' के साथ नया पन्ना बनाया)
प्रभु जी !
यह कैसी उजियाली
सूरज का चेहरा पीला है
पुतली काली-काली
चारों ओर घना सन्नाटा
ख़ुश्क अँधेरा नाटा-नाटा
शहर आदमी में बैठा है
और आदमी ख़ाली
सड़क सरीखी इच्छाओं पर
दौड़ रही काग़ज़ की मोटर
दीवारों पर चिपक रही है
मीठी-मीठी ग़ाली