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शहद में घी / रमेश रंजक

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टी० वी०, रेडियो, अख़बार
एक बूढ़े शेर की
मनुहार !

चन्द शब्दों का धुँधलका
रेत में संदेह जल का
शहद में घी
करेगा स्वीकार ?

आदमी का बैल होना
ज़िन्दगी भर बोझ ढोना
हड्डियों पर
रात-दिन की मार !