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दिमागी मरुस्थल ! / रमेश रंजक
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दिमाग़ी मरुस्थल
पौदे लगाने से नहीं जाता
रोग भीतर, ऊपरी उपचार
शुद्ध अवसरवाद का हथियार
इस तरह का
नाट्य-रूपक नहीं भाता
नींद की ये गोलियाँ हैं व्यर्थ
खोजना है ज़िन्दगी का अर्थ—
उठ ! बदलने को
समूचा बही-खाता