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आग गूँगी नहीं मरती / रमेश रंजक

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मारने को हमें गूँगी मौत
दुश्मनों की फौज है तैयार

एक दुश्मन, जाति का परचम लिए
बाँधकर तमगे
हमारे संगठन पर मारता है चोट
दूसरा आधा धँसा है लीक में
लीक को ही मानता है ओट

तीसरे के हाथ में है धर्म की तलवार
                        हमको मारने को

आग गूँगी नहीं मरती
आग है जब तक
             यहाँ किसको बताएँ,
आदमी हमको बचाना है
दुश्मनों की बाढ़ में
घर-द्वार सारे डूब जाएँ, डूब जाएँ

जोड़ने हैं आदमी से आदमी के तार