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रमजानी ! दे पानी !! / रमेश रंजक

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ये बंजर धरती है, दे पानी !
        रमजानी ! दे पानी !!

जेठ की
परेवट यह व्यर्थ नहीं जाएगी
आएगी नई फ़सल आएगी
         मनमानी ! दे पानी !

पानी ने
पत्थर को, लोहे को, मारा है
जो भी टकराया है, हारा है
         अभिमानी ! दे पानी !
         रमजानी ! दे पानी !!