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इतने शब्द कहाँ हैं / रघुवीर सहाय
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इतने अथवा ऐसे शब्द कहाँ हैं जिनसे
मैं उन आँखों कानों नाक दाँत मुँह को
पाठकवर
आज आप के सम्मुख रख दूँ
जैसे मैंने देखा था उनकों कल परसों।
वह छवि मुझ में पुनरुज्जीवित कभी नहीं होती है
वह मुझ में है। है वह यह है
मैं भी यह हूँ
मेरे मुख पर अक्सर जो आभा होती है।