भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतना ग़ुस्सा / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:31, 17 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवीर सहाय |संग्रह=सीढ़ियों पर ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चिटख़ती क्यों हो
इतना ग़ुस्सा !
बोसा भी तो नहीं
लिया है सिर्फ़ बुस्सा ।