भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अर्पित / रघुवीर सहाय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:51, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवीर सहाय |संग्रह=सीढ़ि‍यों पर ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गमले में उगा नन्हीं-नन्हीं पत्तियों का
हरा सजग बिरुवा मुझे शान्ति देता है ।
तुम्हें क्या देती है तुम्हारी सेनापतियों, सैनिकों युद्धबन्दियों की पाँति ?

तुम जिस जीवन में जुते हो, अनुयायियों,
उसी में मैं भी अर्पित हूँ—
अपने कविधर्म से अपनी ही भाँति ।