भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आओ नहाएँ / रघुवीर सहाय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:43, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवीर सहाय |संग्रह=सीढ़ि‍यों पर ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ नहाएँ
छत से फुहार झरे खड़े रहें आँख मींच
कभी कभी चुपके से देखें धुल रही धूल भरी पिंडलियों की
थके थके एक दूसरे को उघरे देखें
और न शरमाएँ

आओ
कुछ भीगने दो
भीगे केशों में सुगन्धि आ जाने दो
आह, चाहते क्या हैं, कट जाएँ पाप ?

हिश्त् । खड़े रहें, भौहों में ठंड पड़े
कड़े रहें, खड़े रहें
और निखर आएँ ।