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बात जली / रमेश रंजक
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अब न कभी महकेगी
माथे भर ताल में
रोली की कमल-कली
सम्बन्धों की ऐसी धूप ढली ।
दुपहर की छाया-सा
स्नेहिल सिमटाव
फैल गया राहों तक
घुल गए कुहासे में
पारिल अनुभव
डूबे कंठस्थ सबक ।
अब न कभी चहकेगी
प्यास किसी ख़्याल में
साँझ-सकारे पगली
आँगन की होली-सी बात जली
अब न कभी ।