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छन्द की वल्लरी / रमेश रंजक
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एक विश्वास पर ज़िन्दगी
गीत का संकलन हो गई ।
प्यास के पाँव चल-चल थके
अनछुई धूप में, छाँव में
शूल-सी सुधि करकती रही
हर घड़ी दूखते घाव में
वेदना की तहों पर उभर
कल्पना बहुवचन हो गई ।
दृग बहे, स्निग्ध सौगंध की
आस्था डगमगाने लगी
अधजली धूप-सी बेबसी
आरती गुनगुनाने लगी
फैल कर छन्द की वल्लरी
सृष्टि का आयतन हो गई ।
डूब कर बिन्दु के सिन्धु में
बढ़ गई रोशनी की उमर
रश्मियाँ ओढ़ कर लेखनी
कर गई भावना को मुखर
अनकहा जो लिखा ब्याज से
साधना मिश्रधन हो गई ।