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अमर होती हुई / नंदकिशोर आचार्य
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शब्द नहीं है
तूलिका है यह
जिस से मैं लिखता हूँ तुम्हें
कभी ईश्वर, कभी मृत्यु
और कभी चेहरे में प्रेम के
हर कविता शबीह है तुम्हारी केवल—
दिखने में चाहे
कभी सैरा लगे
ठहरी हुई ज़िन्दगी कभी
ठहरी हुई हो जैसे
साँसों में मेरी तुम—
कभी ईश्वर-सी, मृत्यु-सी कभी
कविता में
अमर होती हुई ।
—
9 अप्रैल 2010