भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ामोशी में गुम / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जाने क्यों मुझ को
शब्दक रना चाहता था वह
गुम है जो ख़ुद
ख़ामोशी में अपनी
क्योम सहन नहीं हो पाया
मैं ख़ामोश
ख़ामोशी को उस की
अब शब्द हो कर
भटक रहा हूँ मैं
हर बस्ती हर जंगल
पुकारता हुआ
ख़ामोशी को अपनी
वह भी क्या बेकल है
पुकार के लिए
किसी की ख़ामोशी में
गुम ?
—
15 अप्रैल 2010