भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप रहने तक / पाब्लो नेरूदा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:37, 1 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पाब्लो नेरूदा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब हम करेंगे गिनती बारह तक
और निःशब्द खड़े रहेंगे
एक बार धरती के फलक पर
नहीं बोलेंगे कोई भाषा
एक घड़ी के लिए हो जाएँगे मौन
बिना हिलाए अपनी बाँहें

बड़ी मोहक होंगी वे घड़ियाँ
न उतावली, न कलों का शोर
और एक आकस्मिक अनभिज्ञता में
होंगे सब साथ

सर्द सागर में मछुआरे
नहीं आहत करेंगे व्हेलों को
और नमक इकट्ठा करते लोग
देखेंगे हाथों की चोट

वे जो तत्पर हैं युद्धों के लिए
लड़ाइयाँ ज़हरीली गैसों की, लड़ाइयाँ उगलती आग की
और एक विजय जिसमें शेष नहीं रहता जीवन
वे भी पहन कर आएँगे कपड़े उजले
और टहलेंगे साथियों के साथ
चिंतारहित छाँव में

ये मत समझ बैठना कि मेरा चाहना कोई पूरी निष्क्रियता है
मैं तो जीवन की कहता हूँ
जीवन जिसमें मौत की सौदागरी नहीं

अगर हम एकनिष्ठ न हुए
अपने दौड़ते जीवन को लेकर
अगर एक बार भी नहीं थमे बिना कुछ किए
तो सम्भावना है कि एक बहुत बड़ी निस्तब्धता
भंग कर देगी हमारी उदासियाँ
और हम दे रहे होंगे मौत की चेतावनियाँ
परस्पर बिना एक-दूजे को समझे
शायद ये धरा हमें समझाए
कि जब सब मृतप्राय होगा
तब जीवन सिद्ध कर रहा होगा अपना होना
अब मैं गिनती करूँगा बारह तक
खड़े रहना तुम चुप तब तक
जब तक मेरा जाना न हो ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अपर्णा मनोज