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उजाले बन के छा जाएँ / बल्ली सिंह चीमा
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उजाले बन के छा जाएँ
कि ज़ालिम रात ढल जाए ।
मशालें बन के जल उट्ठें
तो शायद दिन निकल आए ।
बड़ा खूँखार मौसम है
तो धुन के हम भी पक्के,
रहेंगे अन्त तक लड़ते
कि ज़ालिम रुत बदल जाए ।
हमारी कोशिशें जारी रहेंगी
भोर होने तक,
अँधेरा चीरकर शायद
कोई सूरज निकल आए ।