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जान बची लाखों पाए हैं / बल्ली सिंह चीमा

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जान बची लाखों पाए हैं ।
लौट के बुद्धू घर आए हैं ।

सुलझाने के नाम पे उसने,
मसले और भी उलझाए हैं ।

मुझ को ही मालूम नहीं था,
ख़तरे भी हमसाए हैं ।

तन पे मार पड़ी है लेकिन,
मन पर नक़्श उभर आए हैं ।

शायद आँसू हैं यह मेरे,
तेरी आँख में भर आए हैं ।

उड़ने को आकाश नहीं है,
फिर भी पंख निकल आए हैं ।